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Shloka:यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्॥
Bhagavad Gita Reference:1.38
Mahabharata Reference:6023038
Hindi Trnaslation:यद्यपि जिनका चित्त लोभ आदि विकारों के कारण भ्रष्ट हो चुका है, ऐसे ये धृतराष्ट्र पुत्र कौरव कुल के नाश से उत्पन्न दोषों को और मित्रों के साथ वैर करने में होने वाले पाप को नहीं देख रहे हैं ॥३८॥
Sandhi-split Shloka:यद्यपि लोभोपहतचेतसः एते कुलक्षयकृतं दोषं च मित्रद्रोहे पातकम् न पश्यन्ति।
Anvayakrama:यद्यपि लोभोपहतचेतसः एते कुलक्षयकृतं दोषं च मित्रद्रोहे पातकम् न पश्यन्ति॥
Bhagavad Gita Tagged Shloka:यद्यपि/AVK एते/SNV न/AN पश्यन्ति/KP लोभोपहतचेतसः/NP कुलक्षयकृतं/NV दोषं/NP मित्रद्रोहे/NP च/AVK पातकम्/NP ॥/PUNC 1.38/PUNC ॥/PUNC      Tagging scheme used


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